टैक्स में तगड़ी राहत! Income Tax Bill पास, जानें कर्मचारियों को कितना फायदा

आखिरकार करोड़ों नौकरीपेशा लोगों का इंतजार खत्म हुआ। केंद्र सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में आयकर (संशोधन) विधेयक, 2025 पारित कर दिया, जिसे देश के मध्यम वर्ग के लिए एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है। इस बिल का मुख्य उद्देश्य टैक्स प्रणाली को सरल बनाना और आम करदाताओं, विशेषकर वेतनभोगी वर्ग पर टैक्स के बोझ को कम करना है। वित्त मंत्री ने सदन में बिल पर चर्चा के दौरान कहा, “हमारी सरकार ‘ईज ऑफ लिविंग’ के सिद्धांत पर काम करती है। यह विधेयक उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो ईमानदार करदाताओं को पुरस्कृत करेगा और उनकी डिस्पोजेबल आय (खर्च करने योग्य आय) को बढ़ाएगा।”

इस बिल के पास होने के साथ ही नई टैक्स व्यवस्था, जिसे 2020 में पेश किया गया था, अब देश की डिफ़ॉल्ट टैक्स व्यवस्था बन गई है। इसका मतलब है कि यदि आप अपने नियोक्ता को अपनी पसंद के बारे में सूचित नहीं करते हैं, तो आपका टैक्स स्वचालित रूप से नई व्यवस्था के तहत काटा जाएगा। हालाँकि, करदाताओं के पास अभी भी पुरानी टैक्स व्यवस्था को चुनने का विकल्प मौजूद रहेगा।

आइए इस नए बिल के हर पहलू को विस्तार से समझते हैं और जानते हैं कि इससे आपकी सैलरी पर कितना और कैसे असर पड़ेगा।

क्या हैं नए बदलाव? नई टैक्स व्यवस्था के मुख्य आकर्षण

इस विधेयक ने नई आयकर व्यवस्था में कई महत्वपूर्ण और फायदेमंद बदलाव किए हैं। ये बदलाव सीधे तौर पर आपकी बचत को प्रभावित करेंगे:

  1. बढ़ी हुई मूल छूट सीमा (Basic Exemption Limit):
    • सबसे बड़ी राहत मूल छूट सीमा में दी गई है। नई टैक्स व्यवस्था के तहत, अब ₹3 लाख तक की वार्षिक आय पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। पहले यह सीमा ₹2.5 लाख थी। इसका सीधा मतलब है कि ₹3 लाख सालाना कमाने वालों को अब एक भी रुपये का टैक्स नहीं देना होगा।
  2. टैक्स रिबेट की सीमा में बढ़ोतरी:
    • सरकार ने धारा 87A के तहत मिलने वाली टैक्स रिबेट (Tax Rebate) की सीमा को भी बढ़ा दिया है। पहले, ₹5 लाख तक की आय वाले करदाता ही इस छूट के पात्र थे। अब, नई व्यवस्था के तहत, यदि आपकी कर योग्य आय ₹7 लाख तक है, तो आपको कोई टैक्स नहीं देना होगा। यह नौकरीपेशा वर्ग के लिए सबसे बड़ी राहत है।
  3. नए और सरल टैक्स स्लैब (New Tax Slabs):
    • सरकार ने टैक्स स्लैब की संख्या को 6 से घटाकर 5 कर दिया है और दरों में भी कटौती की है, जिससे मध्यम आय वर्ग को सीधा फायदा होगा।

पुरानी बनाम नई टैक्स व्यवस्था: एक विस्तृत तुलना

यह समझना महत्वपूर्ण है कि आपको किस व्यवस्था में कितना टैक्स देना होगा। नीचे दी गई तालिका आपको दोनों व्यवस्थाओं के बीच के अंतर को स्पष्ट रूप से समझने में मदद करेगी।

आयकर स्लैब दरें (वित्तीय वर्ष 2025-26)

आय स्लैब (₹ में)पुरानी टैक्स व्यवस्था की दरेंनई टैक्स व्यवस्था की दरें (संशोधित)
0 से 2,50,000कोई टैक्स नहीं
0 से 3,00,000कोई टैक्स नहीं
2,50,001 से 3,00,0005%
3,00,001 से 5,00,0005%5%
5,00,001 से 6,00,00020%5%
6,00,001 से 9,00,00020%10%
9,00,001 से 10,00,00020%15%
10,00,001 से 12,00,00030%15%
12,00,001 से 15,00,00030%20%
15,00,000 से ऊपर30%30%

ध्यान दें: ₹7 लाख तक की आय पर नई व्यवस्था में रिबेट के कारण प्रभावी टैक्स शून्य होगा।

वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए सबसे बड़ा तोहफा: स्टैंडर्ड डिडक्शन

जब नई टैक्स व्यवस्था शुरू की गई थी, तो इसकी सबसे बड़ी आलोचना यह थी कि इसमें वेतनभोगी कर्मचारियों को मिलने वाले ₹50,000 के स्टैंडर्ड डिडक्शन (Standard Deduction) का लाभ नहीं मिलता था। सरकार ने इस बड़ी कमी को दूर कर दिया है।

नए बिल के अनुसार, अब नई टैक्स व्यवस्था चुनने वाले वेतनभोगी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को भी ₹50,000 की मानक कटौती का लाभ मिलेगा। यह एक गेम-चेंजर कदम है, क्योंकि यह नई व्यवस्था को लगभग हर आय वर्ग के लिए बेहद आकर्षक बनाता है।

उदाहरण से समझें: आपकी सैलरी पर कितना बचेगा टैक्स

सिद्धांतों और तालिकाओं से ज्यादा महत्वपूर्ण यह समझना है कि आपकी जेब पर इसका क्या असर होगा। आइए तीन अलग-अलग आय स्तरों पर इसकी गणना करते हैं।

केस 1: श्री कुमार, जिनकी वार्षिक आय ₹8 लाख है

  • पुरानी व्यवस्था के तहत गणना (मानक कटौती और 80C के बाद):
    • कुल आय: ₹8,00,000
    • स्टैंडर्ड डिडक्शन: ₹50,000
    • धारा 80C के तहत कटौती (मान लीजिए पूरी): ₹1,50,000
    • कर योग्य आय: ₹8,00,000 – ₹50,000 – ₹1,50,000 = ₹6,00,000
    • देय टैक्स: (₹2.5 लाख पर 0) + (अगले ₹2.5 लाख पर 5%) + (अगले ₹1 लाख पर 20%) = ₹0 + ₹12,500 + ₹20,000 = ₹32,500 (सेस अलग)
  • नई व्यवस्था के तहत गणना (संशोधित):
    • कुल आय: ₹8,00,000
    • स्टैंडर्ड डिडक्शन: ₹50,000
    • कर योग्य आय: ₹8,00,000 – ₹50,000 = ₹7,50,000
    • देय टैक्स: (₹3 लाख पर 0) + (अगले ₹3 लाख पर 5%) + (अगले ₹1.5 लाख पर 10%) = ₹0 + ₹15,000 + ₹15,000 = ₹30,000 (सेस अलग)
    • सीधी बचत: ₹2,500

केस 2: सुश्री वर्मा, जिनकी वार्षिक आय ₹12 लाख है

  • पुरानी व्यवस्था के तहत गणना (मानक कटौती और 80C के बाद):
    • कुल आय: ₹12,00,000
    • कटौतियाँ (मानक + 80C): ₹2,00,000
    • कर योग्य आय: ₹10,00,000
    • देय टैक्स: ₹1,12,500 (सेस अलग)
  • नई व्यवस्था के तहत गणना (संशोधित):
    • कुल आय: ₹12,00,000
    • स्टैंडर्ड डिडक्शन: ₹50,000
    • कर योग्य आय: ₹11,50,000
    • देय टैक्स: (₹3 लाख पर 0) + (3-6 लाख पर 5%) + (6-9 लाख पर 10%) + (9-11.5 लाख पर 15%) = ₹0 + ₹15,000 + ₹30,000 + ₹37,500 = ₹82,500 (सेस अलग)
    • सीधी बचत: ₹30,000

केस 3: श्री सिंह, जिनकी वार्षिक आय ₹18 लाख है

  • पुरानी व्यवस्था के तहत गणना (मानक कटौती और 80C के बाद):
    • कुल आय: ₹18,00,000
    • कटौतियाँ (मानक + 80C): ₹2,00,000
    • कर योग्य आय: ₹16,00,000
    • देय टैक्स: ₹2,92,500 (सेस अलग)
  • नई व्यवस्था के तहत गणना (संशोधित):
    • कुल आय: ₹18,00,000
    • स्टैंडर्ड डिडक्शन: ₹50,000
    • कर योग्य आय: ₹17,50,000
    • देय टैक्स: (पहले 15 लाख पर ₹1,50,000) + (अगले ₹2.5 लाख पर 30%) = ₹1,50,000 + ₹75,000 = ₹2,25,000 (सेस अलग)
    • सीधी बचत: ₹67,500

इन उदाहरणों से साफ है कि नई टैक्स व्यवस्था अब ज्यादातर मामलों में ज्यादा फायदेमंद साबित होगी।

किन कटौतियों को कहना होगा अलविदा?

यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि नई टैक्स व्यवस्था का लाभ उठाने के लिए आपको कई लोकप्रिय कटौतियों को छोड़ना होगा। इनमें शामिल हैं:

  • धारा 80C: जीवन बीमा, PPF, ELSS, होम लोन मूलधन आदि पर ₹1.5 लाख की छूट।
  • धारा 80D: स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम पर छूट।
  • HRA (House Rent Allowance): मकान किराया भत्ता पर मिलने वाली छूट।
  • LTA (Leave Travel Allowance): यात्रा अवकाश भत्ता।
  • होम लोन पर ब्याज (धारा 24b): ₹2 लाख तक की छूट।
  • धारा 80G: दान पर मिलने वाली छूट।

विशेषज्ञों की राय और सरकार का पक्ष

जाने-माने टैक्स विशेषज्ञ श्री आलोक शर्मा का कहना है, “यह एक स्वागत योग्य कदम है। नई व्यवस्था में स्टैंडर्ड डिडक्शन को शामिल करना और स्लैब को तर्कसंगत बनाना इसे आम आदमी के लिए बेहद आकर्षक बनाता है। इससे न केवल कर अनुपालन (Tax Compliance) बढ़ेगा, बल्कि लोगों के हाथ में अधिक पैसा आएगा, जिससे खपत को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि, जिन लोगों ने होम लोन ले रखा है या जो 80C में भारी निवेश करते हैं, उन्हें अभी भी अपनी गणना सावधानी से करनी चाहिए।”

सरकार का पक्ष रखते हुए वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हमारा लक्ष्य एक ऐसी कर प्रणाली बनाना है जो सरल, पारदर्शी और हस्तक्षेप-मुक्त हो। नई डिफॉल्ट व्यवस्था इसी लक्ष्य को प्राप्त करती है। इससे करदाताओं को जटिल गणनाओं और कागजी कार्रवाई से मुक्ति मिलेगी।”

कर्मचारियों को अब क्या करना चाहिए?

  1. अपनी टैक्स गणना करें: सबसे पहले, अपनी कुल वार्षिक आय और संभावित कटौतियों के आधार पर दोनों व्यवस्थाओं के तहत अपने टैक्स की गणना करें।
  2. ऑनलाइन कैलकुलेटर का उपयोग करें: आयकर विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध टैक्स कैलकुलेटर का उपयोग करें। यह आपको सटीक परिणाम देगा।
  3. अपने नियोक्ता को सूचित करें: वित्तीय वर्ष की शुरुआत में, आपको अपने एचआर या वित्त विभाग को सूचित करना होगा कि आप किस टैक्स व्यवस्था को चुनना चाहते हैं। यदि आप सूचित नहीं करते हैं, तो आपकी कंपनी नई व्यवस्था के अनुसार TDS काटेगी।
  4. निवेश की समीक्षा करें: यदि आप नई व्यवस्था चुनते हैं, तो आपको अपने निवेशों की समीक्षा करनी पड़ सकती है। हो सकता है कि अब आपको केवल टैक्स बचाने के लिए 80C के साधनों में निवेश करने की आवश्यकता न हो।

अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर?

इस कदम का भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुआयामी प्रभाव पड़ने की उम्मीद है:

  • खपत में वृद्धि: लोगों के हाथ में अधिक पैसा आने से वे वस्तुओं और सेवाओं पर अधिक खर्च करेंगे, जिससे मांग बढ़ेगी।
  • बचत को बढ़ावा: टैक्स का बोझ कम होने से लोग अपनी भविष्य की जरूरतों के लिए अधिक बचत कर पाएंगे।
  • रियल एस्टेट पर असर: होम लोन पर ब्याज और मूलधन की कटौती का लाभ न मिलने से कुछ लोग संपत्ति खरीदने के अपने फैसले पर पुनर्विचार कर सकते हैं। हालांकि, कम टैक्स से बढ़ी हुई आय इस प्रभाव को संतुलित कर सकती है।
  • औपचारिकरण: सरल टैक्स प्रणाली अधिक लोगों को टैक्स के दायरे में आने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है।

निष्कर्ष:

आयकर (संशोधन) विधेयक, 2025 का पारित होना निस्संदेह भारत के करोड़ों वेतनभोगी करदाताओं के लिए एक बड़ी खुशखबरी है। नई टैक्स व्यवस्था, जो अब स्टैंडर्ड डिडक्शन के लाभ के साथ आती है, पहले से कहीं अधिक आकर्षक और फायदेमंद हो गई है। यह न केवल टैक्स के बोझ को कम करती है, बल्कि प्रणाली को सरल बनाकर ‘ईज ऑफ डूइंग’ के साथ-साथ ‘ईज ऑफ लिविंग’ को भी बढ़ावा देती है।

हालांकि, हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। करदाताओं को अपनी वित्तीय स्थिति, निवेश की आदतों और भविष्य की योजनाओं के आधार पर पुरानी और नई व्यवस्था के बीच सावधानी से चुनाव करना होगा। यह एक सकारात्मक बदलाव है जो करदाताओं को सशक्त बनाता है और देश की आर्थिक प्रगति को गति देने की क्षमता रखता है।

अधिक जानकारी और आधिकारिक स्रोत:

अपनी टैक्स देनदारी की सटीक गणना करने और नवीनतम अपडेट, सर्कुलर और अधिसूचनाओं के लिए, हमेशा आयकर विभाग की आधिकारिक वेबसाइट देखें।

सरकारी यूआरएल: https://www.incometaxindia.gov.in/

इस वेबसाइट पर आप टैक्स कैलकुलेटर, अधिनियमों और नियमों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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